राष्ट्रपति भवन में सी.पी. राधाकृष्णन ने ली भारत की दूसरी सर्वोच्च संवैधानिक पद की शपथ”
भारत में 12 सितंबर 2025 को सुबह १० बजे हुए एक ऐतिहासिक समारोह में सी. पी. राधाकृष्णन ने देश के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की। यह शपथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें दिलाई। उपराष्ट्रपति का पद जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद खाली हुआ था। इस चुनाव में राधाकृष्णन ने विपक्षी उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को हराकर जीत हासिल की। समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य, सांसद और कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। यह घटना देश के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखी जा रही है।उपराष्ट्रपति चुनाव में कुल 781 सांसद मतदान के योग्य थे, जिनमें से 767 ने मतदान किया। इसमें से 752 वोट मान्य और 15 वोट अमान्य घोषित किए गए। सी. पी. राधाकृष्णन को 452 वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंदी बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट प्राप्त हुए। इस तरह राधाकृष्णन ने 152 वोटों के अंतर से शानदार जीत दर्ज की।

मतदान का प्रतिशत 98.2% रहा, जो संसद में व्यापक सहभागिता को दर्शाता है।नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, केंद्रीय मंत्री, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे। शपथ ग्रहण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने राधाकृष्णन को शुभकामनाएं दीं और उन्हें देश के संवैधानिक ढांचे को मजबूत करने के लिए प्रोत्साहित किया।सी. पी. राधाकृष्णन तमिलनाडु के वरिष्ठ नेता हैं और राजनीति में उनका लंबा अनुभव रहा है। वे भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे और कोयंबटूर से दो बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं। राधाकृष्णन आरएसएस और जनसंघ की पृष्ठभूमि से राजनीति में आए। इससे पहले वे महाराष्ट्र के राज्यपाल भी रह चुके हैं।

उनकी सादगी और संगठनात्मक कौशल के कारण उन्हें बीजेपी और एनडीए में विशेष स्थान प्राप्त हैसी. पी. राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति पद पर आसीन होना भारतीय राजनीति के लिए एक नए युग की शुरुआत है। उपराष्ट्रपति के रूप में उनका मुख्य दायित्व राज्यसभा के सभापति की भूमिका निभाना और संसद के दोनों सदनों के बीच संतुलन बनाए रखना होगा। उनकी जीत यह दर्शाती है कि एनडीए का संसद में प्रभाव अभी भी मजबूत है।राधाकृष्णन के सामने चुनौती होगी कि वे सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच संवाद और सहयोग का माहौल बनाएं। उनका कार्यकाल यह तय करेगा कि भारतीय लोकतंत्र कितनी मजबूती और पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ता है। उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में संसद में रचनात्मक बहस और जनता के हित में नीतिगत फैसलों को बढ़ावा मिलेगा।

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